अलकनंदा नदी के किनारे स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ इन दिनों पितृ पक्ष के अवसर पर आस्था का केंद्र बना हुआ है। देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण करने पहुंच रहे हैं।
श्रद्धालु तर्पण के बाद बदरीनाथ मंदिर के दर्शन कर अपनी धार्मिक यात्रा को पूर्ण कर रहे हैं। नेपाल, रूस और यूक्रेन सहित कई देशों से आए श्रद्धालु भी यहां की परंपरा में आस्था जताते नजर आ रहे हैं।
स्थानीय तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल को कपालमोचन तीर्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर विचलित हुआ था तो भगवान शिव ने उसे काटकर अलकनंदा तट पर गिरा दिया था। वही सिर आज भी यहां शिला रूप में मौजूद है।
ब्रह्मकपाल को पिंडदान और तर्पण के लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान माना गया है। मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति ने जीवन में कभी भी पितरों का श्राद्ध नहीं किया हो, तो वह यहां आकर कर सकता है। यहां तर्पण के बाद अन्यत्र कहीं और श्राद्ध की आवश्यकता नहीं रहती।
हर वर्ष बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन पितृ पक्ष में यहां विशेष भीड़ देखने को मिलती है।

