Wednesday, December 31

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की तैयारियों पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। न केवल चुनाव समय पर नहीं हो पाए, बल्कि सरकार ने आरक्षण लागू करते समय आवश्यक कानूनी प्रक्रिया को भी दरकिनार कर दिया। गजट नोटिफिकेशन जारी किए बिना आरक्षण व्यवस्था लागू कर दी गई, जिसके चलते हाईकोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।

संविधान की मूल भावना की अनदेखी का आरोप

उत्तराखंड पंचायत संगठन के संयोजक जगत मार्तोलिया ने आरोप लगाया कि आरक्षण लागू करने में संविधान की मूल भावना की अनदेखी की गई। उनका कहना है कि पुराने रोस्टर को खत्म कर नए सिरे से रोस्टर तैयार किया गया, जिससे कई वर्गों को नुकसान हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि यह पहला मौका है जब अधिसूचना जारी होने के बाद हाईकोर्ट ने चुनाव पर रोक लगाई है।

प्रशासक चयन में भी बदली गई व्यवस्था

भाकपा माले के प्रदेश सचिव इंद्रेश मैखुरी ने बताया कि पहले शासन ने पंचायतों में प्रशासक के रूप में प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त करने का आदेश दिया था। लेकिन बाद में यह आदेश रद्द कर निवर्तमान पंचायत प्रतिनिधियों को ही प्रशासक बना दिया गया। यह बदलाव अपने आप में असाधारण है और इससे शासन की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

याचिकाकर्ता बोले – चक्रीय आरक्षण क्रम टूटा

हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले मुरारी लाल खंडेवाल का कहना है कि आरक्षण का चक्रीय क्रम तोड़ दिया गया है और दोहरी व्यवस्था लागू कर दी गई है, जिससे पारदर्शिता पर संदेह गहराता है। उनका कहना है कि पंचायतों में लागू आरक्षण में भारी विसंगतियां हैं, जिन पर आज अदालत में सुनवाई होनी है।

तीन हजार से अधिक आपत्तियां, समाधान अधर में

जिला प्रशासन को आरक्षण को लेकर 3000 से अधिक आपत्तियां प्राप्त हुई हैं, लेकिन अधिकांश का समुचित समाधान अब तक नहीं हो पाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोर्ट चुनाव से रोक हटा भी देता है, तो आरक्षण व्यवस्था को नए सिरे से लागू करना पड़ सकता है।

शासन का पक्ष

पंचायतीराज सचिव चंद्रेश कुमार ने बताया कि आरक्षण नियमावली से संबंधित गजट नोटिफिकेशन की प्रक्रिया प्रगति पर है और इसे शीघ्र जारी कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे उचित न्यायिक मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सके।

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