उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण पर सजा को और कठोर बनाने वाला धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक–2025 फिलहाल लागू नहीं हो पाएगा। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने विधेयक को तकनीकी खामियों के चलते पुनर्विचार के लिए राज्य सरकार को लौटा दिया है।
सूत्रों के अनुसार, लोकभवन ने विधेयक के ड्राफ्ट में कुछ कानूनी और प्रक्रियात्मक त्रुटियों की ओर इशारा किया है। इसके बाद विधायी विभाग को विधेयक वापस भेज दिया गया। अब धामी सरकार के सामने दो ही विकल्प बचे हैं—या तो अध्यादेश के जरिए इसे लागू किया जाए या फिर आगामी विधानसभा सत्र में संशोधित विधेयक दोबारा पारित कराया जाए।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून को पहले भी सख्त किया जा चुका है। वर्ष 2018 में मूल कानून लागू हुआ था, जबकि 2022 में सजा के प्रावधान बढ़ाए गए। इसके बाद 13 अगस्त 2025 को सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए कैबिनेट में नए संशोधन को मंजूरी दी थी, जिसे 20 अगस्त को गैरसैंण विधानसभा सत्र में पारित भी कर दिया गया। इसके बाद इसे राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा गया था।
नए विधेयक में धोखाधड़ी, दबाव, विवाह का झांसा, षड़यंत्र, नाबालिगों की तस्करी या दुष्कर्म के जरिए धर्मांतरण जैसे मामलों में सजा को बेहद कठोर बनाया गया है। गंभीर मामलों में न्यूनतम 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान रखा गया है। साथ ही 10 लाख रुपये तक जुर्माने और गैंगस्टर एक्ट की तर्ज पर संपत्ति कुर्क करने का अधिकार भी जिला मजिस्ट्रेट को देने का प्रस्ताव है।
हालांकि अब राज्यपाल की आपत्तियों के बाद यह विधेयक दोबारा कानूनी कसौटी पर कसा जाएगा। आगे की कार्रवाई सरकार के अगले कदम पर निर्भर करेगी।
