दीपावली पर्व नज़दीक आते ही उत्तराखंड में उल्लू की तस्करी अचानक बढ़ गई है। धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी मान्यता के चलते कुछ तांत्रिक और ज्योतिषी दीपावली की रात उल्लू की बलि को “मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने” का तरीका मानते हैं। इसी कारण पर्व से पहले जंगलों में सक्रिय शिकारी और तस्कर वन विभाग की बड़ी चिंता बन गए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, तराई वन प्रभाग, और बिजनौर बॉर्डर इलाकों में बीते कुछ दिनों से संदिग्ध गतिविधियों में बढ़ोतरी देखी गई है। इसको देखते हुए वन विभाग ने हाई अलर्ट जारी कर दिया है और सभी फॉरेस्ट कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं।
वन विभाग की टीमें अब रात के समय जंगलों और बॉर्डर इलाकों में गश्त बढ़ा रही हैं। खास तौर पर उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर स्पेशल चेकिंग पॉइंट बनाए गए हैं ताकि उल्लू या अन्य दुर्लभ पक्षियों की अवैध तस्करी को रोका जा सके।
कॉर्बेट पार्क प्रशासन ने बताया कि हर साल दीपावली से कुछ हफ्ते पहले उल्लू के शिकार की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। शिकारी आमतौर पर रात के अंधेरे में जाल बिछाकर या लाइट का इस्तेमाल कर इन पक्षियों को पकड़ते हैं।
वन अधिकारी ने कहा, “यह गैरकानूनी गतिविधि है। उल्लू वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित प्रजाति है। किसी भी व्यक्ति को इसे पकड़ने, बेचने या खरीदने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
वहीं, कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि उल्लू मां लक्ष्मी का वाहन माना जाता है और इसकी पूजा से सुख-समृद्धि आती है। लेकिन वे भी यह मानते हैं कि किसी जीव को नुकसान पहुंचाना धर्म नहीं, अधर्म है।
वन विभाग ने आम जनता से अपील की है कि अगर किसी को उल्लू की तस्करी या शिकार की जानकारी मिले तो तुरंत वन विभाग हेल्पलाइन या स्थानीय पुलिस को सूचना दें।

