कभी जिन घरों में बच्चों की हंसी और बुजुर्गों की बतकही गूंजा करती थी, आज वही घर वीरान पड़े हैं। रुद्रप्रयाग जिले के कांडई क्षेत्र का ल्वेगढ़ गांव पलायन की ऐसी मार झेल रहा है कि अब यहां बस तीन महिलाएं और एक पुरुष ही रह गए हैं। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि जब हाल ही में 90 वर्षीय सीता देवी की मृत्यु हुई, तो उनके अंतिम संस्कार के लिए चार कंधे भी न मिल सके।
गांव में कोई पुरुष न होने के कारण शव एक दिन तक घर में ही रखा रहा। जब पास के गांवों — कलेथ, पांढरा मड़गांव और मलछोड़ा — को सूचना मिली, तब वहां से ग्रामीण आए और दूसरे दिन जाकर अंतिम संस्कार हो पाया। मृतका का बेटा मानसिक रूप से अस्वस्थ है, जिससे परिवार की हालत और भी दयनीय हो गई है।
ल्वेगढ़ गांव तक पहुंचना भी आसान नहीं है। सड़क अब तक नहीं बनी, रास्ते झाड़ियों से ढके हुए और बेहद खतरनाक हैं। पेयजल, स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाओं का नामो-निशान नहीं। यही वजह है कि एक-एक कर लोग गांव छोड़ चुके हैं।
कांडई ग्राम प्रधान संजय पांडे ने कहा कि अब कार्यकाल शुरू हुआ है, जल्द ही गांव के रास्ते सुधारे जाएंगे और पेयजल की स्थायी व्यवस्था की जाएगी।
इस मामले पर जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम कठैत ने कहा कि ल्वेगढ़ के रास्तों और पुल निर्माण के लिए जिला योजना में प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। वहीं विधायक भरत सिंह चौधरी ने बताया कि मरछोला तक सड़क स्वीकृत हो चुकी है, जिसका निर्माण जल्द शुरू होगा। सड़क बनने से ल्वेगढ़ की पैदल दूरी भी कम होगी और गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ा जाएगा।
आज ल्वेगढ़ गांव पहाड़ के उस दर्द की तस्वीर बन गया है, जो पलायन और उपेक्षा की कहानी हर रोज कहता है — जहाँ कभी ज़िंदगी बसती थी, वहाँ अब सन्नाटा बोलता है।


