नंदा देवी राजजात यात्रा — उत्तराखंड की सबसे प्रतिष्ठित और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध परंपरा, जिसे एशिया की सबसे बड़ी पैदल धार्मिक यात्रा भी कहा जाता है — के अगले आयोजन में अभी एक साल का समय शेष है। लेकिन उससे पहले ही इंटरनेट पर वायरल एक पोस्ट ने आयोजन समिति को चिंता में डाल दिया है।
दरअसल, सोशल मीडिया पर यह दावा किया जा रहा है कि चौसिंग्या खाडू (चार सिंग वाला मेंढ़ा), जो मां नंदा का देव रथ माना जाता है, अगले साल 2026 की यात्रा के लिए कर्णप्रयाग के कांसुवा गांव में जन्म ले चुका है। चूंकि यह गांव यात्रा का पांचवां पड़ाव है, इसलिए इस खबर ने श्रद्धालुओं के बीच उत्साह और आस्था दोनों को तेजी से बढ़ा दिया है।
लोग मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से इस “खबर” की पुष्टि करने की कोशिश कर रहे हैं, और देश-विदेश से आयोजन समिति के पदाधिकारियों से संपर्क भी कर रहे हैं।
आयोजन समिति की स्पष्ट प्रतिक्रिया
नंदा देवी राजजात यात्रा समिति के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुंवर ने इस वायरल खबर पर नाराजगी जताते हुए कहा कि –
“नंदा देवी राजजात एक शास्त्र-सम्मत, मर्यादित परंपरा है। चौसिंग्या खाडू की घोषणा तभी होती है जब पंचांग जारी हो चुका हो और मौडवी पूजा पूर्ण हो जाती है। अभी यात्रा के पंचांग के जारी होने में समय है – यह 23 जनवरी 2026 (वसंत पंचमी) को संभावित है।”
उन्होंने आगे कहा कि अब तक की सभी यात्राओं में पहले गांववासी राजवंशियों को चौसिंग्या खाडू की जानकारी देते थे। इसके बाद पूजन, निरीक्षण और धार्मिक प्रक्रिया पूरी होती थी। लेकिन अब इंटरनेट मीडिया के ज़रिये अधूरी और असत्य जानकारी पहले ही फैल रही है, जिससे परंपरा की गरिमा प्रभावित हो रही है।
चौसिंग्या खाडू का महत्व और धार्मिक प्रक्रिया
चौसिंग्या खाडू नंदा देवी की यात्रा में एक पवित्र प्रतीक है। इसे देवी का रथ माना जाता है। मान्यता है कि यह खाडू 12 वर्षों में देवी के मायके (कुमाऊं) क्षेत्र में जन्म लेता है। देवी को इस खाडू की पीठ पर कलेऊ (भोजन सामग्री) और श्रृंगार सामग्री के साथ विदा किया जाता है। विशेष पूजन-अर्चन के बाद परंपरा की गरिमा बनाए रखने की अपील
आयोजन समिति ने श्रद्धालुओं और सोशल मीडिया यूज़र्स से अपील की है कि वे अधूरी जानकारी फैलाने से बचें और यात्रा संबंधी किसी भी सूचना के लिए केवल आधिकारिक माध्यमों पर विश्वास करें। नंदा देवी राजजात की गरिमा को बनाए रखने के लिए संयम और सत्यता बेहद जरूरी है।

