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    Home»उत्तराखंड»जौनसार आरक्षण घोटाला, ब्राह्मण-क्षत्रियों को गैरकानूनी तरीके से ST सर्टिफिकेट, RTI एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी का खुलासा
    उत्तराखंड

    जौनसार आरक्षण घोटाला, ब्राह्मण-क्षत्रियों को गैरकानूनी तरीके से ST सर्टिफिकेट, RTI एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी का खुलासा

    Amit ThapliyalBy Amit ThapliyalSeptember 7, 2025No Comments7 Mins Read
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    जौनसार एसटी क्षेत्र नहीं, नेताओं की ठगी से ठगा जौनसार, बेरोज़गारों के हक पर पड़ा डाका – एडवोकेट विकेश सिंह नेगी का खुलासा

    राष्ट्रपति के 24 जून 1967 के आदेश का हो रहा खुल्ला उलंघन, जारी हो रहे गैरकानूनी तरीके से ST सर्टिफिकेट – एडवोकेट विकेश सिंह नेगी

    देहरादून: आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने दावा किया है कि जौनसार अनुसूचित जनजाति क्षेत्र नहीं है। इस क्षेत्र को कोई एसटी का दर्जा नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में महज पांच ही जनजातियां हैं। ऐसे में जौनसार के ब्राह्मण, राजपूत और खस्याओं को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इन जातियों को निर्गत किये गये अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र अवैध हैं। एडवोकेट नेगी कहा कि जौनसार के नेताओं वहां की जनता को छला है। इसका खमियाजा प्रदेश के बेरोजगार भुगत रहे हैं। नेताओं की जालसाजी के कारण प्रदेश के सामान्य वर्ग के युवाओं के हकों पर डाका पड़ा है।

    “लोकुर समिति रिपोर्ट” के अनुसार
    आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने दस्तावेजों के आधार पर कहा है कि जौनसार को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल नहीं है। उन्होंने कहा कि 1965 में भारत सरकार द्वारा डेप्लवमेंट ऑफ सोशल सोसायटी दिनांक 25 अगस्त 1965 में बीएन लोकुर की अध्यक्षता में लोकुर समिति का गठन किया गया। इसे सामान्यतः “लोकुर समिति रिपोर्ट” कहा जाता है। भारत सरकार ने 1965 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सूची का पुनरीक्षण करने के लिए एक समिति गठित की थी। इस समिति का कार्य था कि 1950 के राष्ट्रपति आदेशों (अनुसूचित जाति आदेश 1950 एंव अनुसूचित जनजाति आदेश 1950) की समीक्षा करे और यह देखे कि किन जातियों/जनजातियों को सूची में शामिल या बाहर किया जाना चाहिए। समिति ने अपने कार्य में भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आधारों पर विचार किया। उत्तर प्रदेश (जिसमें उस समय उत्तराखंड भी सम्मिलित था) के संदर्भ में लोकुर समिति ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति बहुत सीमित है। समिति ने कुछ ही जनजातियों को मान्यता देने की संस्तुति की, क्योंकि बाकी जनसंख्या सामान्य जातियों में आती थी। राष्ट्रपति के 24 जून 1967 के आदेश में उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखंड सहित) के लिए केवल पाँच जनजातियों को अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया। 24 जून 1967 के आदेश के अनुसार उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड सहित) में केवल पाँच जनजातियाँ (भोटिया, बुक्सा, जनसारी, राजी और थारू) एसटी हैं। अतः राजस्व अधिकारी इन्हीं पाँच जातियों को प्रमाणपत्र जारी करने की अनुशंसा कर सकते हैं।

    उत्तराखंड में एसटी के रूप में पाँच जनजातियाँ मान्य
    वर्तमान उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में जब 2000 में उत्तराखंड राज्य बना तो अनुसूचित जनजातियों की वही सूची लागू हुई जो पहले उत्तर प्रदेश में लागू थी। यानी आज भी उत्तराखंड में एसटी के रूप में यही पाँच जनजातियाँ मान्य हैं। बाद में कुछ केंद्र सरकार की समितियों (जैसे कर्मा आयोग, 2002 और अन्य सामाजिक न्याय मंत्रालय की सिफारिशें) ने एसटी सूची विस्तार पर विचार किया, परंतु संसद द्वारा संविधान (अनुसूचित जनजातियाँ) आदेश में संशोधन किए बिना कोई नई जाति इसमें नहीं जुड़ सकती। किसी नई जाति/उपजाति को एसटी मानने के लिए संसद में विधेयक पारित करना आवश्यक है।

    ब्राह्मण, राजपूत और खस्याओं को नहीं मिलना चाहिए लाभ-नेगी
    राष्ट्रपति के अध्यादेश में स्पष्ट किया गया है कि 24 जून 1967 से पहले जौनसार में रहने वाले ब्राह्मण, राजपूत और खस्याओं को छोड़कर अन्य जौनसर जाति को ही अनुसूचित जनजाति का लाभ मिलेगा। एडवोकेट नेगी के अनुसार अध्यादेश में जानसर टाइपिंग मिस्टेक होने का लाभ उठाते हुए इसे जौनसारी कर दिया दिया गया और इसका लाभ वहां के समस्त लोग उठा रहे हैं। जबकि यह गैर कानूनी है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित करने का अधिकार नहीं है। सरकार इसके लिए प्रस्ताव बनाकर केंद्र को भेजेगी और यह प्रस्ताव संसद से पास होने के बाद ही राष्ट्रपति को मंजूरी के बाद अस्तित्व में आएगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के नेता इस मामले में जनता को अब तक भ्रमित करते चले आ रहे हैं।

    ब्राह्मणों और स्वर्ण राजपूतों को जारी हो रहे हैं सर्टिफिकेट गैरकानूनी
    एडवोकेेट नेगी का तर्क है कि 1967 के बाद कोई भी अध्यादेश जारी नहीं किया गया है। इसके अलावा संसद में भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र का कोई विधेयक पारित नहीं हुआ है। आर्टिकल 244 में शेड्यूल पांच और छह में उत्तराखंड को कही भी एसटी का दर्जा नहीं दिया गया है। ऐसे में जौनसार क्षेत्र में जितने भी सर्टिफिकेट ब्राह्मणों और स्वर्ण राजपूतों को जारी हो रहे हैं वो गैरकानूनी हैं। इसका खमियाजा प्रदेश के सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को भुगतना पड़ रहा है। आरक्षण के नाम पर जौनसार के नेता जनता को गुमराह कर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।

    1982 में तैयार की गई पुस्तिका में दिशा-निर्देश बिस्तार से
    भारत सरकार कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग गृह मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा 1982 में तैयार की गई पुस्तिका (ब्रोशर) विशेष रूप से सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण से संबंधित दिशा-निर्देश विस्तार से दिये गये हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि राज्य में उनका किसी भी प्रकार से कोई पालन नहीं हो रहा है। इसमें कहा गया है कि अनुसूचित जाति/जनजाति का प्रमाणपत्र केवल वही अधिकारी जारी कर सकते हैं जिन्हें राज्य सरकार द्वारा “सक्षम प्राधिकारी” घोषित किया गया है (जैसे उपजिलाधिकारी/तहसीलदार)। प्रमाणपत्र जारी करने से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आवेदनकर्ता का नाम/जाति राजस्व अभिलेखों या अन्य प्रामाणिक दस्तावेज़ों में दर्ज हो। राजस्व अधिकारियों की भूमिका लेखपाल, पटवारी, राजस्व निरीक्षक आदि की जिम्मेदारी है कि वे आवेदक के अभिलेखों की पड़ताल करें और यह प्रमाणित करें कि संबंधित व्यक्ति वास्तव में अधिसूचित जाति या जनजाति से संबंध रखता है। दि राजस्व रिकॉर्ड उपलब्ध न हों तो अन्य विश्वसनीय साधनों से जाँच की जाए। प्रमाणपत्र उसी व्यक्ति को मिलेगा जो राष्ट्रपति की अधिसूचना 24 जून 1967 का आदेश में उल्लिखित जाति/जनजाति से संबंध रखता हो और उसी राज्य/क्षेत्र का स्थायी निवासी हो। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे राज्य में रहता है, तो वहाँ उसे केवल उसी स्थिति में एससी/एसटी माना जाएगा यदि उस राज्य की अधिसूचना में उसकी जाति सूचीबद्ध है।

    यह भी बता दें कि संसद में 2003 और 2022 में पूछे गये एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने भी माना है कि जौनसार एसटी क्षेत्र नहीं है। उन्होंने लोकसभा में 12 दिसम्बर 2022 को पूछे गये प्रश्न संख्या 786 का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने इसके जवाब में कहा कि पूरे भारत में 700 प्लस अनुसूचित जनजातियां अधिसूचित हैं। सदन में जानकारी दी गयी कि 1967 के बाद भी उत्तराखंड में सिर्फ भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी, थारू ही जनजाति हैं और इसमें कोई अन्य नई प्रविष्टि नहीं हुई है। एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक 2003 में लोकसभा में भी इस संबंध में पूछे गये सवाल में यही उत्तर मिला था। लोकसभा में स्पष्ट कहा गया है कि उत्तराखंड में कोई भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र नहीं है। स्पष्ट है कि जौनसार में रहने वाले ब्राह्मणों और क्षत्रियो को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

    यह एक बड़ी राजनीतिक ठगी- विकेश सिंह नेगी
    एडवोकेट नेगी के मुताबिक यह एक बड़ी राजनीतिक ठगी है। नेताओं ने जहां एक ओर जौनसार की जनता को ठगकर राजनीतिक सत्ता हासिल की तो वहीं प्रदेश के अन्य योग्य अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरी से वंचित रखा। उन्होंने कहा कि जौनसार क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र नहीं कहा जा सकता है और न ही इसे यह दर्जा हासिल है। उन्होंने कहा कि एसटी श्रेणी से मिले सरकारी रोजगार वालों की जांच होनी चाहिए और यह नौकरियां योग्य अभ्यर्थियों को मिलनी चाहिए।

    एडवोकेट नेगी ने कहा कि इस मामले की लड़ाई कानूनी रूप से लड़ी जायेगी, जरूरत पड़ी तो पूरे मामले को लेकर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जायेंगे। इसके साथ वह जल्द संबंधित विभागों और केंद्र सरकार को भी शिकायत करेंगे, ताकि इस घोटाले की जांच हो सके।

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