उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश की लोकभाषाओं और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए कई बड़े फैसले लिए हैं। अब प्रदेश के सभी स्कूलों में सप्ताह में एक बार स्थानीय बोली में भाषण और निबंध प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। इस पहल से बच्चों में अपनी बोली के प्रति प्रेम और सम्मान बढ़ेगा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड भाषा संस्थान की सचिवालय में हुई साधारण सभा और प्रबंध कार्यकारिणी समिति की बैठक में ये घोषणाएं कीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड की लोकभाषाओं, लोककथाओं, लोकगीतों और साहित्य को डिजिटल रूप में संरक्षित किया जाएगा। इसके लिए ई-लाइब्रेरी और ऑडियो-विजुअल सामग्री भी तैयार की जाएगी।
उत्तराखंड साहित्य भूषण पुरस्कार की राशि बढ़ी:
उत्तराखंड साहित्य भूषण पुरस्कार की राशि बढ़ाकर अब 5 लाख 51 हजार रुपये कर दी गई है। इसके अलावा, दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान की राशि 5 लाख रुपये होगी। युवा लेखकों के लिए “युवा कलमकार प्रतियोगिता” भी आयोजित की जाएगी, जिसमें 18 से 24 और 25 से 35 वर्ष के युवा लेखक भाग ले सकेंगे।
दूरस्थ क्षेत्रों में पहुंचेगा साहित्य:
प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों तक साहित्य को पहुंचाने के लिए सचल पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाएगी और बड़े प्रकाशकों से सहयोग लिया जाएगा।
लोकभाषाओं को डिजिटल संरक्षण:
प्रदेश की बोलियों का भाषाई मानचित्र तैयार किया जाएगा और पौराणिक पंडवाणी गायन ‘बाकणा’ को अभिलेखित किया जाएगा। इसके अलावा, गोविन्द बल्लभ पंत के समग्र साहित्य संकलन और 50 से 100 वर्ष पुराने साहित्य का भी संग्रहण किया जाएगा। उच्च हिमालयी और जनजातीय भाषाओं के संरक्षण एवं अध्ययन के लिए शोध परियोजनाएं चलाई जाएंगी।
साहित्य ग्राम की स्थापना:
मुख्यमंत्री धामी ने घोषणा की कि प्रदेश में दो साहित्य ग्राम स्थापित किए जाएंगे, जहां साहित्यकारों के लिए गोष्ठी, परिचर्चा और लेखन की सुविधाएं मिलेंगी।
बैठक में भाषा मंत्री सुबोध उनियाल, प्रमुख सचिव आरके सुधांशु, सचिव वी.षणमुगम, निदेशक स्वाति भदौरिया समेत अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे।