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    Home»राष्ट्रीय»मार्च के बजाय फरवरी की शुरुआत में ही सेब के पौधों पर आने लगे पत्ते व फूल, विशेषज्ञ मान रहे खतरे की घंटी 
    राष्ट्रीय

    मार्च के बजाय फरवरी की शुरुआत में ही सेब के पौधों पर आने लगे पत्ते व फूल, विशेषज्ञ मान रहे खतरे की घंटी 

    Amit ThapliyalBy Amit ThapliyalFebruary 11, 2025No Comments4 Mins Read
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    आम के पेड़ों पर भी 15 से 20 दिन पहले आ गया बौर

    खेतीबाड़ी पर भी पड़ रहा असर 

    हिमाचल। तापमान में बढ़ोतरी के चलते मार्च के बजाय फरवरी की शुरुआत में ही सेब के पौधों पर पत्ते व फूल (पिंक बड वुड) आना शुरू हो गए हैं। मध्य पर्वतीय इलाकों में बुरांश के पौधों पर जनवरी अंत से फूल खिलना शुरू हो गए हैं। यहां तक की आम के पेड़ों पर बौर भी 15 से 20 दिन पहले आ गया है। विशेषज्ञ इसे खतरे की घंटी मान रहे हैं। खेतीबाड़ी में भी इसका असर देखने को मिला है। प्रदेश में ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव और हरित आवरण कम होने के चलते पिछले एक दशक से मौसम चक्र में भी धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। इसका असर खेती और बागवानी पर दिखना शुरू हो गया है।

    प्रदेश में ग्रीन बेल्ट ऊपर की तरफ खिसक रही
    प्रदेश के गर्म इलाकों में अमूमन 13 अप्रैल यानी बैसाखी से पहले गेहूं की कटाई हो जाती है लेकिन अब फसल पकने का समय आगे खिसकता जा रहा है। अप्रैल अंत या मई में गेहूं की कटाई हो रही है। मौसम चक्र के बदलाव से प्रदेश में या तो बारिश हो ही नहीं रही है या इतनी हो रही है कि तबाही मचा रही है। प्रदेश में पिछले तीन सालों में शिमला और धर्मशाला शहर में बर्फबारी का आंकड़ा दहाई को भी नहीं छू पाया है। हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला और जीबी पंत राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान कुल्लू के एक शोध के अनुसार हिमाचल प्रदेश में ग्रीन बेल्ट ऊपर की तरफ खिसक रही है। प्रदेश में पाई जाने वाली एक दर्जन से ज्यादा जड़ी-बूटियां 95 फीसदी तक विलुप्त हो चुकी हैं। ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है कि इस बार प्रदेश में देवदार के पेड़ों से पोलन तक नहीं गिरा।

    क्या बोले विशेषज्ञ
    जलवायु परिवर्तन की मार के कारण तापमान बढ़ने से सामान्य के मुकाबले करीब 25 दिन पहले सेब के पौधे सुप्तावस्था से बाहर आना शुरू हो गए हैं। रॉयल के चिलिंग ऑवर्स पूरे न होने से इस साल सेब की फसल प्रभावित होने की आशंका है। तापमान बढ़ने से फसल पर कीड़ों का हमला बढ़ने का खतरा है। बचाव के लिए सही समय पर सही मात्रा में सही तापमान पर एचएमओ (हाॅर्टिकल्चर मिनलर ऑयल) का छिड़काव करना बेहद जरूरी है। पौधे पर जैसे ही पत्तियां आनी शुरू हो गई हों और पौधे का तापमान 10 डिग्री से अधिक पहुंच गया हो 196 लीटर पानी में 4 लीटर एचएमओ मिला कर छिड़काव करें। इससे कीड़ों के हमले से फसल का बचाव हो सकेगा।-डॉ. कुशाल सिंह मेहता, विषय विशेषज्ञ उद्यान

    मौसम के बदलाव का असर कृषि और बागवानी पर बहुत पड़ा है। इस वर्ष समय पर बारिश न होने से किसानों ने नवंबर में होने वाली गेहूं बिजाई दिसंबर और जनवरी में की। अब फसल उग तो गई है लेकिन पकने में पूरा समय लेगी। दाने की पूरी ग्रोथ नहीं हो पाएगी। इन दिनों बागवान फलदार पौधों की प्रूनिंग और ग्राफटिंग में लगे हैं। यह समय अच्छा है, लेकिन यदि एकदम से तापमान बढ़ जाता है तो इसका असर फल पर भी बढ़ेगा। इन दिनों कई पौधों में समय से पहले फूल आ गए हैं, लेकिन यह सही से विकसित नहीं हो पाएंगे। -डॉ. संजीव चौहान, निदेशक अनुसंधान, बागवानी एवं वानिकी विवि, सोलन

    निचले ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सूखे से नुकसान का आकलन करवाए सरकार : विष्ट
    प्रोग्रेसिव ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकेंद्र सिंह विष्ट का कहना है कि मौसम में बदलाव के कारण इस साल समय से पहले सेब के पौधों में बड वुड आना शुरू हो गया है। स्टोन फ्रूट पर असमय फ्लावरिंग शुरू हो गई है। बारिश बर्फबारी न होने से मिट्टी में नमी नहीं है, इस कारण फ्लावरिंग के दौरान छोटी डंडी का कमजोर फूल निकलेगा जो टिकेगा नहीं। ड्रॉपिंग होने से इस साल निचले ऊंचाई वाले क्षेत्रों में फसल प्रभावित होने का खतरा है। बागवान मौसम की मार झेल रहे हैं, सरकार को तुरंत सूखे से हुए नुकसान का आकलन करने के निर्देश जारी करने चाहिए।

     

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