देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में पाँच दिवसीय बूढ़ी दीपावली उत्सव की धूम मची हुई है। पूरे क्षेत्र के 29 खतों के गांवों में लोग अपने पारंपरिक वेशभूषा में सजे दिखाई दे रहे हैं और गांवों के आंगन दिनभर सांस्कृतिक गतिविधियों से गुलजार हैं।
देवदार और भीमल की मशालों से बड़ी होलियात मनाई
उत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को जौनसार-बावर में बड़ी होलियात का मुख्य कार्यक्रम आयोजित हुआ। परंपरा के अनुसार ग्रामीणों ने देवदार और भीमल की लकड़ी से बनाई गई होले (मशालें) जलाईं।
ढोल–दमाऊ की थाप पर ईष्ट देवों की पूजा-अर्चना की गई और फिर गांवों के सामुदायिक आंगनों में लोग एकत्र होकर देर रात तक लोकगीत, थडिया और रणाई जैसे पारंपरिक नृत्यों में शामिल हुए।
एक माह बाद मनाई जाती है बूढ़ी दीपावली
जौनसार-बावर में दीपावली के एक माह बाद बूढ़ी दीपावली मनाने की पुरानी परंपरा है। मान्यता है कि दिवाली के समय देवता परगनों से बाहर पूजा-अर्चना में रहते हैं, इसलिए क्षेत्र के लोग उनकी वापसी के बाद यह विशेष पर्व मनाते हैं।
29 खतों में सामूहिक उत्सव
खत उपलगांव, खत शैली, खत बमठाड़, खत द्वार, खत बिशलाड, खत अटगांव सहित सभी 29 खतों के गांवों में शुक्रवार को बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए।
सैकड़ों परिवारों ने अपने–अपने गांवों में पारंपरिक रीति से पर्व का आयोजन किया। शाम को बिरुड़ी पर्व भी बड़े उत्साह के साथ मनाया गया।
पारंपरिक व्यंजन और अखरोट का प्रसाद
हर घर में तैयार पारंपरिक व्यंजन — जैसे सेरा, चैंसू, झंगोरा, ओगला, मंडुवे की मालू, दही-घी आधारित पकवान — पहले ईष्ट देवता को अर्पित किए गए।
इसके बाद गांव के मुखिया ने देवता को अखरोट चढ़ाकर प्रसाद वितरण की रीत शुरू की।
अखरोट को शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, इसलिए प्रसाद स्वरूप अखरोट पाने के लिए ग्रामीणों में खूब उत्साह और होड़ देखी गई।
गांवों के बुजुर्ग और युवा रहे मौजूद
पर्व में बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने भाग लिया। उपस्थित प्रमुख लोगों में
वीरेंद्र जोशी, अर्जुन दत्त जोशी, सालक राम जोशी, श्रीचंद जोशी, मायादत्त जोशी, सुन्दरदत्त जोशी, सुभाराम जोशी, जयपाल जोशी, चमन चौहान, शमशेर चौहान, अजबीर चौहान, पीयूष जोशी, अक्षय जोशी आदि शामिल रहे।
