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    आंखों के आगे इतिहास

    Amit ThapliyalBy Amit ThapliyalNovember 5, 2024No Comments7 Mins Read
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    हरिशंकर व्यास
    हां, आंखों देखा इतिहास! ऐतिहासिक मोड़ पर है मौजूदा सिरमौर सभ्यता अमेरिका। वह इस सप्ताह अपने हाथों अपनी सभ्यता का इतिहास बनाएगी। अमेरिकी मतदाता तय करेंगे कि वे अपने सभ्यतागत मूल्यों और सांचे की निरंतरता में कमला हैरिस को जिताते हैं या वैयक्तिक तानाशाही जिद्द वाले डोनाल्ड़ ट्रंप को जिताते हैं। डोनाल्ड ट्रंप का अर्थ अमेरिका में विभाजन, संस्थाओं के पतन की गारंटी है। और जब कोई सभ्यता घर में विभाजित होती है तो उसकी ताकत, एकता, बुद्धि सब धरी रह जाती है। दो खेमों में विभाजित देश फिर धर्म, नस्ल, धन और अहंकार की आपसी लड़ाई का अखाड़ा होता है। ज्योंहि ऐसा हुआ त्योंहि सभ्यता को खत्म करने की ताक में बैठी बर्बर नस्ल और धर्म के लिए मौका खुलता है।

    आज इस मौके की ताक में चीन है तो पुतिन और इस्लाम भी है। इन तीनों के इरादे आंखों के आगे लाइव उपस्थित हैं। सोचें, जिस अमेरिका ने इस सदी के आरंभ में, 9/11 के बाद आतंकवाद (इस्लाम) के खिलाफ वैश्विक जंग का हुंकारा मारा था, वह भटका हुआ है और उसकी जगह वह इजराइल इस्लाम को ठोक रहा है, जिसके नेता नेतन्याहू बिना इस समझ के क्रूरता दर्शा रहे हैं कि वे बंधकों को छुड़वा रहे हैं, बदला ले रहे हैं, देश को सुरक्षित बना रहे हैं या क्रूसेड है? मेरा मानना है इजराइल का ठोकना इस्लाम को और जिद्दी बनाना है? इसके नतीजे उलटे और उग्र होंगे। उस नाते यहूदियों और ईसाईयों दोनों की नासमझी है जो वे अपने जिद्दी भाई (अब्राहम की संतान, इस्लाम) को अपने मूल धर्म में लौटाने, उनकी घर वापसी की नहीं सोचते, बल्कि ठोक-ठोक कर तीसरे महायुद्ध, सभ्यतागत संघर्ष का पानीपत मैदान बना दे रहे हैं। इस्लाम की लाइव ठुकाई के फोटो इस्लाम को सुलगाने वाले हैं। निश्चित ही अतीत में इस्लाम की क्रूर तलवार और क्रूसेड़ के दृश्य आज के मुकाबले बेइंतहा खौफनाक थे। मगर पहले और दूसरे महायुद्ध के क्रम में यदि तीसरे महायुद्ध का सिनेरियो बन रहा है तो वह इस कारण पूरी पृथ्वी के लिए घातक होना है क्योंकि अब परमाणु हथियारों के जखीरे की वास्तविकता भी है।

    इसलिए यहूदी बनाम मुसलमान, ईसाई बनाम इस्लाम, इजराइल बनाम ईरान, अमेरिका बनाम चीन, यूक्रेन बनाम रूस, उत्तर कोरिया बनाम दक्षिण कोरिया आदि की हकीकत का कुल सार आमने सामने की सीधी लड़ाई के पाले बनना है। हर पक्ष की जिद्द खूंखार होती हुई है। एक तरफ अमेरिका, पश्चिमी सभ्यता तथा ईसाई और यहूदी हैं तो दूसरी और चीन है। फिर इस्लाम (जो इजराइल की ठुकाई से चीन-रूस से जुड़ता हुआ है) है। चीनी नेता बोलते नहीं हैं। न राष्ट्रपति माओ, देंग शियाओ पिंग भड़भडिय़ा नेता थे और न शी जिनफिंग हैं। ये चीनी नेता अतीत के अपने गौरव हान सभ्यता की वैश्विक पताका में चीन की श्रीवृद्धि के राष्ट्रवादी हैं। इनके लिए याकि मौजूदा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ठोस पूंजी (रूसियों की तरह) क्रूर, कठोर, परिश्रमी चाइनीज जनता है। जिसका कभी भी लोकतंत्र, मानवीय मूल्यों, स्वतंत्रता से सरोकार नहीं रहा है। तभी माओ की क्रांति हो या देंग और शी जिनफिंग के वैश्विक कारखाने, अमीरतम बनने का मिशन, सभी में नेतृत्व, पार्टी और जनता ने एकनिष्ठता से काम किया है। उसके लिए असुरी महाशक्ति बनना मुश्किल नहीं था।

    इसका लक्ष्य अब अमेरिका व पश्चिम सभ्यता की जगह अपने झंडे, अपनी व्यवस्थाओं में दुनिया को चलाना है। राष्ट्रपति शी जिनफिंग और उनके रणनीतिकारों ने चुपचाप बिसात बिछा दी है। चीन का लक्ष्य अमेरिका की जगह लेना है। एशिया का अधिपति होना है। चीन के लिए भारत, जापान, दक्षिण एशिया, ताइवान, आसियान देशों का जीरो अर्थ है। इसलिए क्योंकि ज्योंहि अमेरिका का पतन हुआ, दुनिया की उसकी चौधराहट छूटी या उसने छोड़ी तो पलक झपकते ये तमाम छोड़े बड़े देश चीन की कॉलोनी होंगे। यों भी दक्षिण या तीसरी दुनिया के ये देश आर्थिक तौर पर चीन से बंधे, उस पर आश्रित हैं। उधर परोक्ष तौर पर चीन ने रूस या पाकिस्तान के मार्फत मध्य एशिया के सभी इस्लामी देशों के अलावा अफगानिस्तान के तालिबान, ईरान और उन सब मुस्लिम देशों का विश्वास जीत लिया है जो इजराइल के हाथों घायल हैं।
    अपनी इस ग्रैंड योजना, वैश्विक बिसात में चीन किस शातिरता से फैसले करते हुए है इसका प्रमाण ब्रिक्स की हालिया शिखर बैठक थी। राष्ट्रपति शी जिनफिंग और पुतिन ने बैठक में तुर्की के उन राष्ट्रपति एर्दोआन को बुलाया जो उइगर मुसलमानों के उत्पीडऩ के हवाले चीन के खिलाफ बोलते थे। एर्दोआन को शी और पुतिन ने पटा लिया है।

    वे इनसे वैसे ही संतुष्ट हैं, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में यह हल्ला बनवाते हुए हैं कि कितनी बड़ी कूटनीतिक जीत हुई जो चीन ने लद्दाख में अपनी सेना पीछे की। भारत भी चीन के साथ बहुपक्षीय विश्व बनाने की और बढ़ता हुआ है। अर्थात भारत और चीन भाई भाई तथा अमेरिका, पश्चिमी सभ्यता की दादागिरी के खिलाफ विश्व राजनीति में हिंदू राष्ट्र की भी एक अलग स्वतंत्र ढपली व विश्व व्यवस्था। और हम दक्षिण ब्लॉक, गुटनिरपेक्ष जमाने के देशों और परंपरागत मित्र रूस तथा चीन के हमराही हैं! बहरहाल, लाइव इतिहास फिलहाल अमेरिका बनाम चीन तथा यहूदी बनाम इस्लाम की जोर आजमाइश व परिवर्तनों का है। इसका एक अनहोना फोटो चीन और रूस द्वारा ठेठ यूरोप की सीमा पर बर्बर उत्तर कोरियाई सैनिकों को पहुंचा देना है। कल्पना करें डोनाल्ड ट्रंप जीते और उन्होंने यूक्रेन की मदद रोक कर रूस से समझौते का दबाव बनाया तो पुतिन के हौसले कितने बुलंद होंगे? रूसी-उत्तरी कोरियाई सेना के तब जश्न के फोटो यूरोपीय संघ पर कैसा प्रभाव बनाएंगे? ईरान के हौसले बुलंद होंगे या कम होंगे? हालांकि डोनाल्ड ट्रंप को ईरान विरोधी तथा नेतन्याहू परस्त माना जाता है लेकिन व्यक्तिवादी नेता ने यदि खुमैनी के घर जा कर पकौड़े खाने तथा अपने को अमनपरस्त बनाने की ठानी तो उसके गिरगिटी व्यवहार में रंग तो बदलते ही रहेंगे।

    असल बात डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से विभाजित अमेरिका, विभाजित पश्चिमी बिरादरी की है। इसके सिनेरियो में चीन के लिए स्वर्णिम मौका बनेगा। वह अमेरिका को रिप्लेस कर अपने को नई विश्व व्यवस्था, नई मौद्रिक वित्तीय व्यवस्था का संचालक बनने की और बढ़ेगा। पृथ्वी की धुरी होने के हान सभ्यता के इलहाम को वास्तविकता के पंख लगेंगे। आर्थिक-सैनिक-राजनीतिक ताकत में सिरमौर होने का मौका खुलेगा।
    सो, आंखों के आगे तीसरे महायुद्ध व सभ्यताओं के संघर्ष की अग्रिम झांकी है वही पृथ्वी के इतिहास का मोड़ भी है। इस सप्ताह स्पेन के वेलेंसिया में आठ घंठे की बारिश का वीडियो दहला देने वाला था। जलवायु परिवर्तन और विनाश की और बढ़ती पृथ्वी की सेहत की वह झांकी थी। वेलेंसिया विकसित देश का संपन्न इलाका है। इसलिए जलवायु परिवर्तन, बाढ़ या सूखे के एक्स्ट्रीम अनुभव में वेलेंसिया के फोटो में पानी में बही कारों का जो अंबार व कबाड़ दिखा वह चेतावनी है कि इलाका कितना ही समर्थ क्यों न हो प्रकृति के विनाश में किसी के बचने के अवसर नहीं हैं। इस साल भारत, दक्षिण एशिया में भी अतिवर्षा, बाढ़, गर्मी का एक्स्ट्रीम था लेकिन हम क्योंकि आदि हैं तो दिल-दिमाग वैसे विचलित नहीं हुआ जैसे वेलेंसिया के अनुभव से यूरोप विचलित है। सभी देख-जान-समझ रहे हैं कि पृथ्वी ऐसी ही यदि गर्म होती गई तथा जलवायु परिवर्तनों के अनुभवों में मानवता को हर समय जूझते रहना पड़ा तो सदी के आखिर में कहां पहुंचे हुए होंगे, लेकिन बावजूद इसके गंभीर कोई नहीं है!

    दूसरी तरफ यह लाइव इतिहास भी है कि अतंरिक्ष यान वैसे ही उड़ और लैंड करने लगे हैं, जैसे एक हवाई जहाज करता है। एआई मानव बुद्धि को रिप्लेस कर रही है। विज्ञान ऐसी दवाईयां बना रहा है जिनसे मनुष्य शरीर आगे डायबिटीज, हार्ट, प्रोस्टेट, मोटापे, मानसिक बीमारियों से मुक्ति पाएगा। लोगों को कमाई करने की जरूरत ही नहीं होगी। यूनिवर्सल इनकम की सुकून भरी जिंदगी में मनुष्य को सिर्फ अपने शगल, मौज-मस्ती में जीना है। वे सब काम रोबो और एआई करेंगे, जिन्हें मनुष्य करता हुआ है।

    सोचें, कैसे दो एक्स्ट्रीम हैं। एक तरफ शी जिनफिंग, पुतिन, नेतन्याहू, डोनाल्ड ट्रंप, खुमैनी जैसों की जाहिल जिद्द लाइव है, प्राकृतिक आपदाएं हैं तो दूसरी और ज्ञान-विज्ञान के वे सत्य शोध हैं, जिससे मनुष्य के लिए अंतरिक्ष भी खुलता हुआ है!

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