Dainik UjalaDainik Ujala
    What's Hot

    दर्दनाक दुर्घटना: उत्तरकाशी में अनियंत्रित पिकअप वाहन सड़क से नीचे गिरा… 2 की मौत

    June 7, 2025

    थराली बैली ब्रिज निर्माण में लापरवाही उजागर, सीएम धामी ने चार इंजीनियर किए निलंबित

    June 6, 2025

    उत्तराखंड: कब तक इंतजार? बेरोजगार युवाओं ने मांगी इच्छा मृत्यु की अनुमति

    June 5, 2025
    Facebook Twitter Instagram
    Saturday, June 7
    Facebook Twitter Instagram
    Dainik Ujala Dainik Ujala
    • अंतर्राष्ट्रीय
    • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
      • अल्मोड़ा
      • बागेश्वर
      • चमोली
      • चम्पावत
      • देहरादून
      • हरिद्वार
      • नैनीताल
      • रुद्रप्रयाग
      • पौड़ी गढ़वाल
      • पिथौरागढ़
      • टिहरी गढ़वाल
      • उधम सिंह नगर
      • उत्तरकाशी
    • मनोरंजन
    • खेल
    • अन्य खबरें
    • संपर्क करें
    Dainik UjalaDainik Ujala
    Home»ब्लॉग»उस्ताद जाकिर हुसैन अपने प्रशंसकों को आह भरता छोड़ गए
    ब्लॉग

    उस्ताद जाकिर हुसैन अपने प्रशंसकों को आह भरता छोड़ गए

    Amit ThapliyalBy Amit ThapliyalDecember 26, 2024No Comments5 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest WhatsApp LinkedIn Tumblr Email Telegram
    Share
    Facebook WhatsApp Twitter Email LinkedIn Pinterest

    आलोक पराडक़र
    उस्ताद जाकिर हुसैन को भारतीय शास्त्रीय संगीत का सुपरस्टॉर कहना गलत न होगा। साधक तो वे तबला के थे, जिसे मुख्यत: संगत वाद्य ही माना गया है, लेकिन उनकी लोकप्रियता सब पर भारी थी। वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के संभवत: सर्वाधिक पारिश्रमिक लेने वाले कलाकार थे, उनके कार्यक्रमों के लिए आयोजकों को लंबा इंतजार करना होता था, उनका आकषर्ण ऐसा था कि फिल्मों और विज्ञापनों में भी उन्हें लिया जाता रहा। वे विश्व में भारत के सांस्कृतिक राजदूत भी थे और प्रख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर के बाद वे ही थे जिन्होंने विभिन्न देशों में भारतीय संगीत को लोकप्रिय बनाया और एक बड़ा प्रशंसक वर्ग तैयार किया। ग्रैमी’ जैसे प्रतिष्ठित अवार्ड में भी उन्होंने भारतीयता का परचम लहराया, लेकिन लोकप्रियता के शिखर पर होने और अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद उनके काम में कहीं समझौता नहीं था। वास्तव में उनमें नाम और काम का संतुलन कुछ वैसा ही था जैसा उनके तबले में बाएं और दाएं का। उनकी उपस्थिति जहां समारोहों की सफलता का पर्याय थी, वहीं उनकी संगत से मुख्य कलाकार का कार्यक्रम भी निखर उठता था। लंबे समय की सफलता उनकी विनम्रता को बदल नहीं सकी थी। हंसमुख, हाजिर जवाब और हरदिल अजीज उस्ताद जाकिर हुसैन अपने व्यक्तित्व में भी कृतित्व जैसी खूबसूरती जीवनपर्यत कायम रख सके।

    तबले को मुख्यत: संगत का वाद्य ही माना गया है, लेकिन उस्ताद जाकिर हुसैन उन कुछ तबला वादकों में थे जिन्होंने इसे एकल और मुख्य वाद्य के रूप में भी स्थापित किया। वे जब लोकप्रिय होने लगे तो पिता के साथ उनकी जुगलबंदी का चलन खूब था। पिता-पुत्र का तबला वादन खूब पसंद किया जाता था। उस्ताद जाकिर हुसैन के एकल वादन की खास बात यह भी होती कि उन्होंने अपने वादन को शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञों के योग्य ही नहीं बनाया बल्कि इसे आम लोगों के लिए भी रुचिकर बना दिया था। जिस प्रकार प्रख्यात कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज अपनी तिहाइयों को दर्शकों को समझाने के लिए तरह-तरह की कथा-प्रसंगों का सहारा लेते थे, कभी चिडिय़ों का उदाहरण देते तो कभी बच्चों के गेंद खेलने का, उस्ताद जाकिर हुसैन भी तबले पर कभी डमरू, कभी मंदिर की घंटी, कभी रेल तो कभी घोड़े की टाप का वादन करते हुए आम लोगों में भी अपनी गहरी पैठ बना लेते थे।

    शास्त्र को लोकप्रिय मुहावरे में इस प्रकार ढाल लेने का कौशल उन्हें खूब आता था, लेकिन ऐसा नहीं था कि वे एकल वादन के ही उस्ताद थे। एकल वादन के साथ ही उनकी संगत की भी खूब मांग और धूम थी। वे जब संगत करते तो कार्यक्रमों का एक नया ही रंग बन जाता। पहले प्रख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर के साथ और फिर प्रख्यात बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, प्रख्यात संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा, प्रख्यात कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज जैसे कलाकारों के साथ उन्होंने खूब कार्यक्रम किए। शिव-हरि के साथ उनकी संगत खूब फबती थी जिसके कई वीडियो आज भी यू-ट्यूब पर देखे जा सकते हैं। हालांकि उन्होंने हर प्रमुख कलाकार के साथ संगत की, शास्त्रीय संगीत से लेकर सुगम और फिल्म संगीत तक, वरिष्ठ एवं प्रख्यात कलाकार से लेकर युवा और उभरते कलाकारों तक, उन्होंने सबके साथ बजाया।

    लोकप्रिय पाश्र्व गायक हरिहरन के साथ गजलों के अलबम में उनकी उपस्थिति साफ नजर आती है। उस्ताद जाकिर हुसैन ने संगत को लेकर अपने दृष्टिकोण से जुड़ा एक बड़ा जरूरी किस्सा एक बार लखनऊ में बताया था। उन्होंने बताया था कि मैं 17 साल का था और पंडित रविशंकर के साथ यात्रा पर था। एक कार्यक्रम हुए, दूसरा कार्यक्रम हुआ, मैंने रविशंकर जी से पूछा कि कैसा हो रहा है? रविशंकर ने कहा कि तुम मेरे साथ तबला बजाते हो लेकिन मुझे देखते क्यों नहीं? उसके बाद शाम को जब कार्यक्रम हुआ तो उस्ताद जाकिर हुसैन पंडित रविशंकर की ओर थोड़ा और घूमकर बैठ गए। उस दिन संगत की एक नई किताब खुल गई। वह पंडित को देखकर बजाने लगे और उन्हें समझ में आने लगा कि संगत कैसे करनी है। वह कहते थे कि जब आपकी तालीम होती है तो आपकी एकल वादन की तालीम होती है। आप सीखी हुई चीजें बजा देंगे और आपकी प्रशंसा हो जाएगी, लेकिन जब तक संगत करना नहीं आएगा तब तक आप तबलिए नहीं बन सकते।

    वह यह भी कहते थे कि सभी रंग का तबला आपके तबले में समाहित नहीं है तो आप एक अच्छे संगतकार नहीं बन सकते। सिर्फ दिल्ली का बजाकर, सिर्फ बनारस का बजाकर, सिर्फ पंजाब का बजाकर आप अच्छे संगतकार नहीं बन सकते। हालांकि उस्ताद जाकिर हुसैन कभी भी संगत में हावी होने की कोशिश नहीं करते थे, अपनी लोकप्रियता का दंभ नहीं दिखाते थे,  वे मुख्य कलाकार की जरूरत और सोच के अनुसार ही तबला वादन करते थे लेकिन कई बार ऐसा भी होता था कि उनकी लोकप्रियता पूरे कार्यक्रम में हावी हो जाती थी। ऐसे में यह भी हुआ कि कई कलाकार उनकी लोकप्रियता से आक्रांत होने लगे, उनसे परहेज करने लगे। उस्ताद जाकिर हुसैन भारतीय संगीत के सांस्कृतिक राजदूत भी थे। ज्यादातर प्रसिद्ध कलाकार विदेश में कार्यक्रम करते हैं, कई-कई महीने वहां गुजारते हैं, लेकिन प्रख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर के बाद उस्ताद जाकिर हुसैन ही थे जिन्हें विश्व के संगीतप्रेमियों ने सिर-आंखों पर बिठाया। वे लंबे समय से अमेरिका  में ही रहते थे। विभिन्न देशों के संगीत के साथ उनके कार्यक्रम भी खूब होते थे।

    इन सबके बावजूद वे भारत में भी लगातार सक्रिय रहते थे। अपने सुदर्शन व्यक्तित्व के कारण उन्हें फिल्मों में अभिनय करने का आमंतण्रमिला था। विज्ञापन में तो वे बहुत पहले ही आ चुके थे। उनके समकालीन मानते थे कि उनकी लोकप्रियता में बड़ा योगदान विज्ञापनों का भी रहा है, जिसके कारण वह घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। वाह उस्ताद उनके नाम से जुड़ गया था, लेकिन अचानक वे अपने प्रशंसकों को आह भरता छोड़ गए।

    Share. Facebook WhatsApp Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email Telegram
    Avatar photo
    Amit Thapliyal

    Related Posts

    आधुनिकता के अनेक सार्थक पक्ष भी हैं जो समाज को बेहतर बनाते हैं

    January 3, 2025

    दक्षेस से भारत को सतर्क रहने की जरूरत

    January 2, 2025

    एक अच्छे, भले और नेक प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह

    January 1, 2025

    बिजली चोरी या फिर अवैध निर्माण जवाबदेही तय हो

    December 31, 2024
    Add A Comment

    Leave A Reply Cancel Reply

    © 2025 Dainik Ujala.
    • Home
    • Contact Us

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

    Go to mobile version