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    विध्वंसकारी हथियारों की बढ़ती उपलब्धि अधिक विनाशक

    Amit ThapliyalBy Amit ThapliyalNovember 29, 2024No Comments6 Mins Read
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    भारत डोगरा
    निरंतर अधिक विध्वंसकारी हथियारों की बढ़ती उपलब्धि के कारण हिंसा की प्रवृत्तियां अधिक विनाशक रूप ले रही हैं। छोटे-बड़े विभिन्न तरह के विनाशकारी हथियारों के तेज प्रसार में विश्व के हथियार उद्योग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह एक मोटे मुनाफे का उद्योग है जिसमें भ्रष्टाचार या अन्य उपायों से राजनीति को प्रभावित करने की भारी क्षमता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने विभिन्न उद्योगों की इस आधार पर रैंकिंग की थी कि सबसे अधिक रित कौन सा उद्योग देता है। इसमें हथियार उद्योग को दूसरा स्थान मिला। अमेरिकी वाणिज्य विभाग द्वारा जनरल एकाउंटिंग ऑफिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार विश्व के सब तरह के व्यापार में 50 प्रतिशत रित देने के मामले हथियार के व्यापार से जुड़े होते हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट ने अनुमान प्रस्तुत किया है कि जितने मूल्य का सौदा होता है, उसका कम से कम 10 प्रतिशत तो रित में जाता है। यह 10 प्रतिशत भी अरबों डॉलर का मामला है।

    हथियारों की बिक्री से जुड़े भ्रष्टाचार की बड़ी राशि प्राय: चोरी-छिपे विदेशी खातों में जमा की जाती थी, पर इसका खुलासा हो जाने के डर के कारण अब इसमें बदलाव आ रहा है, और ऐसे उपाय खोजे गए हैं, जिनसे इस भ्रष्टाचार को दबाना और सुनिश्चित हो सके। टैंक, बड़ी तोपों, लड़ाकू जहाज, पनडुब्बी आदि के कारोबार में बहुत साधन-संपन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियां लगी हैं, जिनकी पहुंच सीधी सत्ता के गलियारों में है। ये कंपनियां सत्ताधारियों को इस तरह प्रभावित करती हैं कि अरबों डॉलर के उनके सौदे होते रहें, फिर चाहे इस कारण विश्व का वर्तमान और भविष्य अत्यधिक असुरक्षित ही क्यों न हो जाए। इन कंपनियों और इनके दलालों के असर के कारण निशस्त्रीकरण के वे प्रयास आगे नहीं बढ़ पाते हैं जिनकी विश्व को बहुत जरूरत है। विश्व के अधिकांश जनसाधारण एक दूसरे से अमन-शांति से रह सकते हैं, पर हथियारों से जुड़े निहित स्वार्थ और इनके गठजोड़ के राजनीतिज्ञ ऐसी असुरक्षा फैलाते हैं कि जिसमें महंगे हथियार बहुत जरूरी प्रतीत होते हैं।

    विश्व के सबसे विनाशकारी हथियारों को नियंत्रित करने के अंतरराष्ट्रीय समझौते आगे बढऩे के स्थान पर पीछे जा रहे हैं यानी इनका असर पहले से और कम हो रहा है। दूसरी ओर, तरह-तरह के छोटे और हल्के हथियारों में भी ऐसे तकनीकी बदलाव आते रहे हैं जिनसे इनकी विनाशक क्षमता बढ़ जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार की गई ‘हिंसा एवं स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट’ के अनुसार, अधिक गोलियों की अधिक तेजी से, अधिक शीघ्रता से और अधिक दूरी तक फायर करने की क्षमता बढ़ी है, और इसके साथ ही इन हथियारों की विनाशकता भी बढ़ी है। एके-47 में तीन सेकंड से भी कम समय में 30 राउंड फायर करने की क्षमता है, और प्रत्येक गोली एक किमी. से भी अधिक की दूरी तक जानलेवा हो सकती है।

    एमनेस्टी इंटरनेशनल और ऑक्सफेम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि किसी भी अन्य हथियार की अपेक्षा छोटे हथियार अधिक लोगों को मारने, घायल करने, विस्थापित करने, उत्पीडि़त करने, अगवा करने और रेप करने के लिए उपयोग होते हैं..इस समय विश्व में लगभग 64 करोड़ छोटे हथियार हैं। लगभग 60 प्रतिशत छोटे हथियार सैन्य और  पुलिस दलों से बाहर के क्षेत्र में हैं। केवल सेनाओं के उपयोग के लिए एक वर्ष में 14 अरब गोलियों का उत्पादन किया जाता है-यानी विश्व की कुल आबादी की दोगुनी गोलियों का उत्पादन। अधिक विध्वंसक हथियारों की उपलब्धि ऐसे दौर में बढ़ रही है जब कई कारणों से हिंसक प्रवृत्तियां भी बढ़ रही हैं। इस तरह एक ओर अधिक खतरनाक हथियारों की मांग बढ़ रही है तो दूसरी ओर उनके अधिक वास्तविक उपयोग और इस कारण होने वाले विनाश की आशंका भी बढ़ रही है। हथियारों पर होने वाले बढ़ते खर्च के कारण अनेक देशों में लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने की क्षमता कम होती है।

    अरबों डॉलर के हथियारों के सौदे होते हैं जबकि जनसंख्या का बड़ा हिस्सा साफ पेयजल तक से वंचित रह जाता है या कुपोषण से पीडि़त होता है। दुनिया में विभिन्न स्तरों पर निशस्त्रीकरण के अभियान को तेज करने की जरूरत है ताकि हथियारों और गोला-बारूद की मांग, उत्पादन, उपलब्धि और वास्तविक उपयोग विभिन्न स्तरों पर काम हो सके। विश्व स्तर पर खतरनाक हथियार के विरुद्ध अनेक अभियान हाल के वर्षो में सक्रिय रहे हैं। ऐसे कुछ अभियानों के प्रयासों से विश्व स्तर पर कुछ खतरनाक हथियारों पर प्रतिबंध लगाने वाले समझौते भी हुए हैं।

    बारूदी सुंरग या लैंडमाइंस बहुत खतरनाक हथियार हैं, जिनके कारण बहुत से निदरेष लोग बहुत दर्दनाक ढंग से घायल होते हैं, और कई बार जीवन भर के लिए अपंगता भी उन्हें सहनी पड़ती है। किसी युद्ध के समाप्त होने के समय बाद भी कई वर्ष तक युद्ध के दौरान बिछाई गई बारूदी सुरंगों के शिकार बच्चों सहित आसपास के अनेक लोग होते रहते हैं। बारूदी सुरंगों पर प्रतिबंध लगाने वाला अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ है। अधिकांश देशों ने इसे स्वीकार किया है, पर कुछ महत्त्वपूर्ण देशों की स्वीकृति मिलनी अभी शेष है। इसके अतिरिक्त कई हिंसक समूह भी अभी तक बारूदी सुरंगों का प्रयोग कर रहे हैं। क्लस्टर बम बहुत खतरनाक हथियार है जिसमें एक ही बड़े बम से बहुत छोटे-छोटे बम दूर-दूर बिखर जाते हैं। ये छोटे बम कुछ तुरंत फटते हैं और कुछ बाद में तथा बहुत दर्दनाक ढंग से घायल करते हैं या मारते हैं। विशेषकर बच्चे बहुत समय तक दर्दनाक ढंग से इनका शिकार होते रहे हैं। क्लस्टर बमों के विरुद्ध भी एक बड़ा अभियान विश्व स्तर पर चला। फलस्वरूप इन्हें प्रतिबंधित करने वाला अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ। यह भी एक महत्त्वपूर्ण सफलता है पर अभी कुछ महत्त्वपूर्ण देशों की इसके लिए स्वीकृति मिलनी शेष है। ब्लाइंडिंग लेसर या अंधापन उत्पन्न करने वाले लेसर पर प्रतिबंध के लिए भी एक अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ है।

    अब जो आगे सबसे बड़ी चुनौती है वह रोबोटिक्स के सैन्य उपयोग की है। रोबोट के सैन्य उपयोग से बहुत गंभीर खतरे जुड़े हैं जिनमें से एक यह भी है कि ऐसे हथियार नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं तथा जो नियोजित हैं, उनसे कहीं अधिक विध्वंस कर सकते हैं। रोबोट आ जाने से बहुत खतरनाक हद तक युद्ध स्वचालित मशीनों के नियंत्रण में जा सकता है। युद्ध से जुड़ा विनाश और अनिश्चय बहुत तेजी से बढ़ सकता है। स्टीफेन हॉकिन्स जैसे विश्व के अनेक जाने-माने वैज्ञानिकों ने रोबोटिक्स के सैन्य उपयोग के विरुद्ध बयान जारी कर इन पर प्रतिबंध की मांग की। इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘जानलेवा रोबोट को रोकने का अभियान’ सक्रिय है। इस तरह के अभियानों से अधिक लोग जुड़ें तो विश्व में इन अधिक खतरनाक हथियारों को रोकने में सफलता मिलेगी। यह बड़ी जरूरत बन गया है क्योंकि उभरते हुए नये तनावों के कारण विश्व में कई स्तरों पर युद्ध की आशंका बढ़ रही है। वैसे तो युद्ध की आशंका को ही न्यूनतम करने के बुनियादी प्रयास होने चाहिए पर इसके साथ ही अधिक खतरनाक हथियारों के प्रसार को भी रोकना जरूरी है ताकि कहीं युद्ध हो भी तो उसे अधिक विनाशकारी होने से रोका जा सके। सबसे बड़ी और कठिन चुनौती तो परमाणु हथियार के प्रसार और संभावित उपयोग को रोकने की है।

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